जब कोई व्यक्ति आत्मा की सच्चाई को समझने की दिशा में आगे बढ़ता है, तो वह झूठी मान्यताओं, सामाजिक परंपराओं और बाहरी पहचान से ऊपर उठ जाता है। इस प्रक्रिया में, व्यक्ति की ऊर्जा या आवृत्ति (frequency) उच्चतर हो जाती है। यह उच्च ऊर्जा तरंगें न केवल व्यक्ति के जीवन को बदलती हैं, बल्कि समाज के लिए भी चुनौती बन जाती हैं।
जैसा कि गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
"उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"
(भगवद्गीता 6.5)
अर्थात, "मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा ऊपर उठाना चाहिए और स्वयं को पतन की ओर नहीं ले जाना चाहिए। व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु।"
यह श्लोक बताता है कि उच्च आवृत्ति पर जीने का अर्थ है आत्मा के मित्र बनना और मन, मोह तथा अज्ञान को त्यागना।
ऊंची ऊर्जा का अर्थ
ऊंची ऊर्जा का अर्थ केवल अच्छा या सकारात्मक होना नहीं है। इसका तात्पर्य है:
झूठी मान्यताओं से मुक्ति: समाज और परंपराओं ने जो विचार थोपे हैं, उनसे आजादी।
आत्मा की सच्चाई का अनुभव: अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझना।
सत्य की खोज: बाहरी दुनिया की अपेक्षाओं से परे जाकर सच्चाई को देखना।
समाज का सोया हुआ दृष्टिकोण
जिन्हें "सोया हुआ समाज" कहा जाता है, वे अपने झूठे विश्वासों और आदतों में खोए हुए हैं। जब कोई व्यक्ति इन बंधनों से मुक्त होकर उच्च आवृत्ति पर जीने लगता है, तो यह समाज को चुनौती देता है।
"न सा सभा यत्र न सन्ति वृत्ताः,
न ते वृत्ताः ये न भजन्ति सत्यम्।"
(महाभारत, सभा पर्व)
अर्थात, "वह सभा सभा नहीं है जहाँ सत्य को स्थान नहीं मिलता, और वे व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं जो सत्य का पालन नहीं करते।"
उच्च आवृत्ति पर जीने वाले व्यक्ति सत्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन सोया हुआ समाज इसे समझ नहीं पाता और उनकी आलोचना करता है।
इतिहास से उदाहरण
1. गौतम बुद्ध: जब उन्होंने राजसी जीवन त्यागकर ध्यान और सत्य की खोज की, तो समाज ने उन्हें शुरू में अस्वीकार किया।
2. संत कबीर: उन्होंने समाज की झूठी मान्यताओं को चुनौती दी और सत्य की बात कही, लेकिन उन्हें कई बार विरोध का सामना करना पड़ा।
3. भगवान महावीर: उन्होंने अहिंसा और तपस्या के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया, लेकिन उनका मार्ग समाज के लिए कठिन था।
ऊंची ऊर्जा के साथ जीवन जीने की चुनौतियां
1. अकेलापन: उच्च आवृत्ति पर रहने वाले व्यक्ति को समाज से अलग-थलग महसूस हो सकता है।
2. आलोचना: ऐसे लोग अक्सर गलत समझे जाते हैं और उनका मजाक उड़ाया जाता है।
3. समाज का विरोध: उनकी स्वतंत्रता और सच्चाई सोए हुए समाज को असहज करती है।
इस चुनौती से कैसे निपटें?
1. सहनशीलता और धैर्य:
जैसा कि गीता में कहा गया है:
"सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥"
(भगवद्गीता 2.38)
"सुख-दुःख, लाभ-हानि और विजय-पराजय को समान मानते हुए अपने कर्तव्य का पालन करो।"
ऊंची ऊर्जा के साथ जीवन जीने वाले व्यक्ति को इन सभी स्थितियों में समान रहना चाहिए।
2. आध्यात्मिक साधना: ध्यान और स्वाध्याय के माध्यम से अपनी ऊर्जा को संतुलित रखें।
3. समाज को समझने की कोशिश: यह याद रखें कि हर व्यक्ति अपनी यात्रा पर है। उनके दृष्टिकोण को भी सम्मान दें।
ऊंची ऊर्जा तरंगों पर जीना आत्मा की सच्चाई को अपनाने का मार्ग है। यह मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन यह व्यक्ति को आध्यात्मिक स्वतंत्रता और सच्चे आनंद की ओर ले जाता है। सोए हुए समाज की आलोचना और अस्वीकार के बावजूद, अपने सत्य पर अडिग रहना ही सबसे बड़ी विजय है।
"यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥"
(भगवद्गीता 6.19)
"जैसे बिना हवा के स्थान में स्थिर दीपक जलता है, वैसे ही अपने मन को योग में स्थिर करने वाला योगी स्थिर रहता है।"
अपनी ऊर्जा को स्थिर और उच्च बनाए रखें, यही सच्ची सफलता का मार्ग है।
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