प्रेम - तंत्र



प्रेम ही असली सार है,
जीवन का यह उपहार है।
जब स्पर्श बिना वासना के हो,
आत्मा का मिलन, यह आधार है।

तन से परे, मन के पास,
जहाँ न हो कोई आस।
सिर्फ शुद्ध भाव का संगम,
यही तो तंत्र का विलास।

वासना से परे जो जाए,
उससे दिव्यता झलक जाए।
जहाँ प्रेम ही पूजा बन जाए,
तंत्र वहीं जीवन महकाए।

सांसों में बहती मधुर धारा,
दिल को छू जाए हर किनारा।
प्रेम जब हो शुद्ध और गहरा,
यही तंत्र का सच्चा सहारा।


"प्रेम का दिव्यता रूप"

प्रेम ही असली चीज़ है, जहाँ मन का हर बीज है। कामनाओं से परे की धारा, जहाँ आत्मा ने खुद को पुकारा। जब स्पर्श हो बिना वासना की छाया, तो प्रेम ...