मुसाफ़िर हूँ मैं, चला जाऊंगा,

ग़म की लहरों में डूबा हूँ, या ग़म मुझमें डूबा हूँ,
पर ग़म के साथ चल कर, नयी राहों को चुना हूँ।

उस ग़म को बाहर निकाल कर, नये सपने सजाएं,
मैंने कुछ नया रचा है, नयी धारा में बह जाएं।

ग़म तो बस एक पल है, एक पहाड़ है जो चला जाएगा,
नई सुबह की किरणों में, मैं खुद को पा जाऊंगा।

राहों में मैंने अपने सफ़र को जारी किया है,
मुसाफ़िर हूँ मैं, चला जाऊंगा, ऊँचाईयों को छूने को आया हूँ मैं।

उड़ने की आशा से, मैं बस यहाँ आया हूँ,
कुछ पेड़ों के नीचे अटका हूँ, नये सपनों को जगाने को आया हूँ।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...