ध्यान: आत्मा की सर्वोच्च विद्या

 

"न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।  
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥"
(श्रीमद्भागवत 9.21.12)

यह श्लोक ध्यान के माध्यम से आत्मा की ओर उन्मुख होने के महत्त्व को उजागर करता है। जब व्यक्ति अपनी आत्मा के केंद्र में पहुँचता है, तो उसके भीतर की शांति और संतोष उसे संसार के दुखों और भ्रम से मुक्त कर देते हैं। यह अनुभव किसी भी सांसारिक सुख-सुविधा या राज्य से अधिक मूल्यवान होता है।  

ध्यान मानव जीवन की सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण विधा है, जिसे संतों, योगियों और महात्माओं ने सदियों से अपनाया है। ओशो का यह कथन कि "इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जिसने अपनी आत्मा के केंद्र में पहुँचने के बाद निराशा, अर्थहीनता, या आत्महत्या का विचार किया हो," इस तथ्य को बल देता है कि आत्मिक उन्नति के पश्चात् मनुष्य का जीवन परम आनंद और संतोष से भर जाता है।  

ध्यान का महत्त्व

ध्यान केवल एक साधना या मानसिक क्रिया नहीं है, यह आत्मा से जुड़ने की प्रक्रिया है। यह हमें हमारी वास्तविकता से परिचित कराता है, जिससे हमारा जीवन एक नए दृष्टिकोण से देखने योग्य बनता है। ध्यान का अर्थ है अपने अंदर के शोर को शांत करना, मन को वश में करना, और अपनी आत्मा से संवाद करना। यह वह अवस्था है जब व्यक्ति बाहरी दुनिया से कटकर अपने भीतर की दुनिया में प्रवेश करता है और आत्मा के परम सत्य का अनुभव करता है।  

"ध्यानं निर्विकल्पं समाधिरुपायः"
ध्यान की यह अवस्था हमें निर्विकल्प स्थिति में लाती है, जहाँ कोई विकल्प नहीं होता, केवल शुद्ध चेतना होती है। ओशो कहते हैं कि ध्यान आत्मा की सर्वोच्च विद्या है, क्योंकि यह हमें हमारी सच्चाई से जोड़ता है। यह विज्ञान हमें इस जीवन के परे के अर्थ को समझने की क्षमता देता है।  

अर्थहीनता और ध्यान

आधुनिक युग में, जब जीवन की आपाधापी और तनाव ने लोगों को निराशा, दुख और आत्महत्या की ओर धकेल दिया है, ध्यान हमें इन विकारों से मुक्ति का मार्ग दिखाता है। जीवन में आने वाली हर निराशा और व्यर्थता की भावना केवल उस समय उत्पन्न होती है जब हम अपनी आत्मा से दूर होते हैं। आत्मा से जुड़कर व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य समझ में आता है, और वह भीतर से सशक्त और शांत महसूस करता है।  

**"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।"**  
(भगवद्गीता 18.66)

श्रीकृष्ण ने भी गीता में यही कहा है कि जब हम सब कुछ त्याग कर अपने अंतर्मन की शरण लेते हैं, तब हमें वास्तविक शांति प्राप्त होती है। ध्यान इसी शरण का मार्ग है। यह हमें हमारी सीमित सोच और व्यर्थ के विचारों से मुक्त करता है और हमें हमारे अस्तित्व के वास्तविक सत्य का अनुभव कराता है।  

ओशो के अनुसार, ध्यान का विज्ञान हमें आत्महत्या, निराशा और व्यर्थता से दूर रखता है, क्योंकि यह आत्मा की उच्चतम अवस्था तक पहुँचने का साधन है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपनी आत्मा का अनुभव करता है, बल्कि उसे संसार की हर समस्या का समाधान भी मिल जाता है। ध्यान हमें सिखाता है कि जीवन का मूल उद्देश्य आत्मा की शांति और संतोष में निहित है, जो हमें किसी भी बाहरी वस्तु से नहीं, बल्कि हमारे भीतर की यात्रा से प्राप्त होती है।  

ध्यान के बिना जीवन अधूरा है और आत्मा की ओर जाने वाली इस यात्रा में व्यक्ति का मिलन होता है उस परम सत्य से, जहाँ कोई दुख, निराशा या व्यर्थता नहीं होती।  

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...