राक्षसी प्रवृत्तियों का प्रतीक: परस्त्रीगमन और बलात्कार की राक्षसी स्वभाव


वाल्मीकि रामायण में यह वर्णन मिलता है कि राक्षसी प्रवृत्तियाँ समाज में नैतिकता और मानवीय मर्यादाओं का उल्लंघन करती हैं। रावण ने माता सीता से जो शब्द कहे, वे केवल राक्षसी स्वभाव का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक ऐसा संदेश हैं जो हमें समाज में नैतिक मूल्यों और धारणाओं की आवश्यकता का अहसास कराता है। रावण ने सीता को कहा था:

> "परस्त्रीगमन अथवा उनका बलात् हरण सदा से राक्षसों का स्वधर्म रहा है।"
(वाल्मीकि रामायण ५.२०.५)


संस्कृत श्लोक द्वारा राक्षसी प्रवृत्ति की व्याख्या

संस्कृत साहित्य और शास्त्रों में राक्षसों की प्रवृत्तियों को लेकर विभिन्न श्लोक मिलते हैं जो उनकी क्रूरता, अनाचार और अनैतिकता को दर्शाते हैं। "परस्त्रीगमन" का विचार प्राचीन काल में राक्षसी आचरण माना गया है। महाभारत में कहा गया है:

> "कामात् कंचित् भयात्कंचित् लोभात् कंचित् प्रियंवदात्।
धर्मं विलप्य रक्षांसि, सीदन्त्याशु सहस्रशः॥"
(महाभारत, वन पर्व २५.१३१)



इसका तात्पर्य है कि काम, भय, लोभ और प्रिय-वाक्य के कारण राक्षसी प्रवृत्तियाँ धर्म को नष्ट कर देती हैं। काम और लोभ में लिप्त होकर वे दूसरे की स्त्रियों पर बलपूर्वक अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं। यह प्रवृत्ति केवल व्यक्ति का पतन नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज की स्थिरता को खतरे में डालती है।

राक्षसी प्रवृत्ति और नारी सम्मान का महत्त्व

रामायण के उदाहरण से यह समझ में आता है कि राक्षसी प्रवृत्तियाँ नारी के सम्मान को ठेस पहुँचाने का काम करती हैं। रावण ने माता सीता का हरण कर के उन्हें अपनी शक्तियों के आगे झुकाने का प्रयास किया। यह उदाहरण इस बात को समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि जिस समाज में नारी का सम्मान नहीं होता, वह समाज राक्षसी प्रवृत्तियों का शिकार बन जाता है।

नारी की रक्षा और समाज में धर्म की स्थापना

संस्कृत में एक श्लोक है जो कहता है:

> "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया:॥"
(मनुस्मृति ३.५६)



अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है और जहाँ नारी का अपमान होता है, वहाँ किए गए सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। यह श्लोक नारी सम्मान के महत्व को दर्शाता है और यह बताता है कि धर्म की स्थापना के लिए नारी का सम्मान करना अनिवार्य है। राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत तभी संभव है जब समाज में नैतिकता और अनुशासन का पालन हो।

रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथ हमें राक्षसी प्रवृत्तियों और उनके परिणामों के बारे में बताते हैं। परस्त्रीगमन, नारी पर अत्याचार, और उनका हरण राक्षसी प्रवृत्तियों का हिस्सा रहे हैं। इन अनैतिक कार्यों से बचना ही सच्चे धर्म का पालन है। समाज में महिलाओं के प्रति आदर और उनकी सुरक्षा की भावना को बनाए रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
आज के समाज में राक्षसी प्रवृत्तियाँ किसी विशिष्ट पात्र तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ऐसी घटनाएँ हमारे चारों ओर घट रही हैं। आधुनिक युग में "परस्त्रीगमन" और "बलात्कार" जैसे अपराधों का स्वरूप बदल गया है, लेकिन उनके मूल में वही अनैतिकता और निर्दयता है, जिसे हम रामायण और महाभारत के काल से जानते हैं। रावण ने जिस प्रकार से सीता का अपहरण किया था, वह केवल एक व्यक्ति का अपराध नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी प्रवृत्ति का प्रतीक है, जो समाज की शांति, सुरक्षा और मर्यादाओं को तोड़ती है।

आधुनिक समाज में राक्षसी प्रवृत्तियों के उदाहरण

आज की मीडिया रिपोर्ट्स हमें बार-बार यह याद दिलाती हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार, शोषण और अपहरण की घटनाएँ कम होने के बजाय बढ़ रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई प्रसिद्ध मामले हमारे सामने आए हैं, जैसे निर्भया केस, जिसमें एक निर्दोष महिला के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, या फिर हाल के मामलों में लड़कियों का अपहरण और शोषण, जो समाज में गहरी चिंता का विषय है। ये घटनाएँ केवल अपराध नहीं हैं, बल्कि समाज में नैतिकता के गिरते स्तर को भी दर्शाती हैं।

आज के समाज में भी कई लोग अपनी शक्ति और संपत्ति का दुरुपयोग करके दूसरों की बहन-बेटियों पर बुरी दृष्टि डालते हैं, जो राक्षसी प्रवृत्तियों का ही आधुनिक रूप है। इस प्रकार की घटनाएँ बताती हैं कि राक्षसी प्रवृत्ति केवल किसी ग्रंथ की कहानी नहीं है, बल्कि आज भी समाज में मौजूद है और इसे खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्प और नैतिकता की आवश्यकता है।

संस्कृत श्लोक और आज का सन्दर्भ

रामायण और महाभारत के संस्कृत श्लोक आज भी प्रासंगिक हैं। "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।" (मनुस्मृति ३.५६) - यह श्लोक आज भी हमें यह शिक्षा देता है कि जहाँ महिलाओं का सम्मान होता है, वहाँ सकारात्मकता और सुख समृद्धि आती है। लेकिन दुर्भाग्य से आज भी समाज में नारी के सम्मान को लेकर कमियां देखने को मिलती हैं। समाज में केवल कानून और सजा से बदलाव नहीं आ सकता; समाज को अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलना होगा।

समाधान और नारी सम्मान का पुनर्स्थापन

आज की राक्षसी प्रवृत्तियों का समाधान केवल सख्त कानून और सजाओं से नहीं हो सकता। इसके लिए हमें समाज में नैतिकता, शिक्षण और सही संस्कारों को पुनर्स्थापित करना होगा। बच्चों को बचपन से ही नारी सम्मान का महत्व सिखाया जाना चाहिए। यदि परिवार और समाज मिलकर ऐसे संस्कार देंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ महिलाओं का सम्मान करेंगी और राक्षसी प्रवृत्तियों का अंत संभव हो सकेगा।

अतः यह कहना उचित है कि राक्षसी प्रवृत्तियाँ जैसे परस्त्रीगमन और बलात्कार आज भी समाज के लिए गंभीर समस्या हैं। इनसे छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय नैतिकता, शिक्षा, और संस्कारों को मजबूत करना है। अगर समाज नारी के सम्मान को प्राथमिकता देगा, तो देवता और सकारात्मकता स्वतः ही समाज में रमण करेंगे।






छाया का सच 3



जिसे समझा था हमने दानव,
वो था केवल एक छाया।
अहम ने गढ़ी थी तस्वीरें,
मन ने रची थी माया।

जो दिखता है बाहर भयावह,
वो भीतर का ही अंश है।
पर  जानो अगर,
यही सत्य तुम्हारा बलवंश है।

जब देखो इसे मात्र प्रक्षेपण,
नहीं कोई सत्ता इसकी।
महत्त्व खो देता है तुरंत,
जब पहचान हो गहरी इसकी।

परछाई को जब समझ लिया,
नहीं कोई ठोस हकीकत।
तब तुम खुद को पाओ वापस,
मिट जाए मन की कुत्सित दहशत।

हर डर, हर द्वंद, हर भ्रम,
है मन का खेल पुराना।
जाग्रत होकर जब देखो इसे,
तब जीवन हो सुहाना।

ताकत है इसमें, स्वीकारने की,
कि जो देखा, वो सब मृगतृष्णा।
दानव नहीं, नायक हो तुम,
मनोमुक्ति की है ये प्रक्रिया।


The Profound Benefits of Anulom Vilom Pranayama: A Journey to Inner Peace and Health

Anulom Vilom Pranayama, also known as alternate nostril breathing, is a powerful breathing practice from ancient yogic traditions. It involv...