गम के आवाज़ में नयी कविता बुनता हूं,सपनों के साथ, जीवन का सफर चलता हूं।

गम के आवाज़ में नयी कविता बुनता हूं,
सपनों के साथ, जीवन का सफर चलता हूं।

चलते चलते राहों में, गम को पार करता हूं,
नई उड़ानों की तलाश में, आसमानों को छूता हूं।

हर सुबह नए आसमान के साथ उठता हूं,
ख्वाबों की डोरी को जीने की राह पर बांधता हूं।

मुसाफिर हूं इस ज़िंदगी के सफर में,
खुद को ढूंढते हुए, नई राहों में निकलता हूं।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...