जितना जानता हूँ, उतना ही खोता हूँ,
इस सत्य की कड़वाहट में रोज़ रोता हूँ।
दुनिया जो दिखती है, वैसी होती नहीं,
सपनों की सरज़मीं कहीं होती नहीं।
जीवन कोई गाथा नहीं,
बस छोटे-छोटे क्षणों का मेला है।
प्रेम भी परीकथा नहीं,
एक नाज़ुक अहसास का झमेला है।
सुख कोई ठहराव नहीं,
बस पल भर की झलक है।
जिसे थामने की कोशिश में,
हर दिल बहक है।
इस समझ में जो गहराई है,
वहीं एक वीरानी छुपाई है।
मानो दुनिया से कट गया हूँ,
अपने आप से हट गया हूँ।
लोगों के बीच होकर भी अकेला,
मन जैसे भटकता रेला।
यह सत्य जो सामने आता है,
हर भ्रम को धीरे-धीरे मिटाता है।
पर क्या इस ज्ञान में शांति है?
या यह बस एक और क्रांति है?
जो मुझे खुद से दूर करती है,
और अकेलेपन की ओर बढ़ती है।
फिर सोचता हूँ, शायद यही जीवन है,
जानने और खोने का संतुलन।
जहाँ हर मुस्कान के पीछे है एक आह,
और हर रौशनी के नीचे एक राह।