---
मैंने बहुत कुछ सहा, बहुत कुछ सीखा,
हर मुस्कान के पीछे एक सिसकी थी गहरी।
हर उम्मीद की लौ में जलती थी एक थकी हुई रूह,
पर अब मेरी आत्मा कहती है — बस, अब बहुत हुआ।
मैंने रिश्तों के नाम पर कई बोझ उठाए,
जिनके लिए मैं जीया, वो ही अक्सर अजनबी से हो गए।
कुछ लम्हों ने वक़्त की किताब में ऐसे दाग छोड़े,
जिन्हें मिटाने की चाह में खुद को ही खो दिया।
पर अब…
अब जब सुबह की हवा मेरे अंदर कोई सुकून सा भरती है,
और चाँदनी मुझे यह समझाती है
कि परिवर्तन भी एक प्रेम है — स्वयं से,
तो मैं थम जाता हूँ, सुनता हूँ —
अपनी आत्मा की धीमी पर सच्ची आवाज़।
"अब उस अध्याय को बंद कर दे,
जिसका अर्थ खो चुका है,
जिसका शब्द अब केवल खरोंच बन चुके हैं पन्नों पर…"
मैं डरता हूँ — हाँ,
अजनानी राहों से, अधूरे संवादों से,
पर मेरी आत्मा अब थक चुकी है
झूठे जुड़ावों की जंजीर में घिसते-घिसते।
"विराम भी एक पूर्णविराम होता है,
और रुकना भी आगे बढ़ने की शुरुआत है…"
अब मैं उस किताब का आखिरी पन्ना मोड़ रहा हूँ,
जिसमें दर्द भरे संवाद हैं,
जिसमें मैं बार-बार टूटता हूँ — जुड़ने के बहाने।
अब मैं खुद से कहता हूँ —
"तू वो फूल नहीं जो हर बार किसी बंजर में खिल जाए,
तू वो बीज है जिसे
नई मिट्टी, नया आकाश, और नई बारिश चाहिए।"
सत्य यही है —
मेरी आत्मा जानती है
कि अब समय है
अगला अध्याय शुरू करने का।
जहाँ मैं अपने लिए लिखूंगा —
नए शब्दों में, नई रोशनी में।
जहाँ कोई पीछे का बोझ न होगा,
सिर्फ मैं होऊंगा —
पूर्ण, स्वतंत्र, और सत्य।
🌿 अंत में यही कहता हूँ —
"जब आत्मा बोले, तो रुक जाना चाहिए…
क्योंकि वही वह मौन होता है
जो जीवन की सबसे सच्ची बात कहता है।"
🕊️