**"तू मेरे भीतर रहती है,
उस जगह… जहां कोई नहीं पहुंच सकता,
जहां शब्द भी चुप रहते हैं,
और सांसें बस तुझे पुकारती हैं।
तू जानती भी नहीं…
कि हर सुबह तुझसे शुरू होती है,
हर शाम तुझ पर खत्म।
मैंने कभी माँगा नहीं तुझसे कुछ,
सिवाय उस मुस्कराहट के
जो तू बिना जाने दे जाती थी मुझे।
तेरे जाने के बाद भी
तू मुझमें रह गई…
जैसे मंदिर में वो धूपबत्ती की खुशबू —
जो दीया बुझने के बाद भी
आस-पास बसी रहती है।**