विश्वासघात

विश्वासघात: छुपा बीज और उसकी सजा

मैंने देखा है, विश्वासघात का बीज,
जो चुपके से बोया जाता है,
सोचते हैं लोग कि यह छुपा रहेगा,
लेकिन यह हमेशा बाहर आता है, बिना रोक-टोक।

यह एक गहरे अंधेरे में पनपता है,
चुपके से बढ़ता है, जड़ों को फैलाता है,
फिर एक दिन यह सामने आता है,
जैसे कोई तूफान, जो सबकुछ उजागर कर देता है।

ईश्वर का कानून, बोने और काटने का,
कभी किसी के लिए नहीं झुकता,
जो बीज बोते हो, वही फल पाओगे,
कभी न कभी यह सत्य सामने आता है।

मैं जानता हूँ, चाहे कितनी भी कोशिशें की जाएं,
छुपे हुए कर्म एक दिन सामने आते हैं,
विश्वासघात की सजा वही है,
जो हमें अपने कर्मों से मिलती है।

तो मैं कहता हूँ, सच्चाई के साथ चलो,
क्योंकि हर छुपा हुआ सच एक दिन उभरता है,
और वह सच वही होता है,
जो हमें हमारे कर्मों की सच्चाई बताता है।

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...