ख़ामोशी से गायब होना



चुपचाप गायब हो जाना, जैसे हवा में मिल जाना,
कुछ समय बाद, शायद तुम भी भूल जाओगे अपना नाम।
यह एक तोहफा भी है, और शाप भी है,
कभी-कभी तुम्हारी यादें धुंधली हो जाती हैं, बिना किसी हंगामे के।

गायब होते हुए भी, अपनी पहचान छोड़ जाते हैं,
कभी-कभी खामोशी ही सबसे तेज़ बोलती है।
सिर्फ वो समझ सकते हैं, जो दिल से गहरे होते हैं,
कभी खोकर भी खुद को पा लेते हैं, वो जो खोते हैं।

एक तोहफा, क्योंकि तुम खुद को मुक्त कर लेते हो,
और शाप, क्योंकि कभी-कभी तुम भी कहीं खो जाते हो।
गायब होकर भी कुछ खास छोड़ जाते हैं,
और फिर एक दिन, तुम बस एक याद बनकर रह जाते हो।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...