अंधेरे में फुसफुसाहट





फर्श पर हल्की सी आहट, हवा में कोई साँस,
जब तुम्हें लगता है, घर में नहीं है कोई पास।
दीवारें हिलती, परछाइयाँ होती लंबी,
कुछ अनजाना देख रहा है, हर बात बारीकी से जाँची।

बाहर की हवा चीखती, पर अंदर और खौफनाक,
जैसे घर के भीतर गूँजती हो एक पुरानी खामोश आवाज़।
कदमों की आहट, दरवाजे के पास ही थम जाती,
तुम ठिठक जाते हो, दिल की धड़कन और बढ़ जाती।

बत्ती झपकती है, खामोशी घनी है,
तुम्हारी दुआ है कि ये डर बस रात का हिस्सा हो सही।
पर फिर कानों के पास आती है धीमी फुसफुसाहट,
एक ऐसी आवाज़, जिसे सुनने की नहीं थी चाहत।

तुम्हारा नाम पुकारती, धीमे और धीमे सुर में,
एक जगह और समय से, जो तुम्हें याद भी नहीं।
अंधेरे की बातें, पुरानी छुपी सच्चाई,
सोते हुए भी जागती रही वो परछाई।

आईने में दिखता है, जो वहाँ नहीं होना चाहिए,
एक साया, एक आकृति, जिसकी आँखें खोखली।
अब वो पास आ रही है, करीब और करीब,
उसकी साँसें ठंडी, जैसे ठंडा समंदर का अजीब।

भागो अगर तुम भाग सकते हो, पर कहाँ जाओगे?
वो तुम्हें तुम्हारे बचपन से ही ढूंढती आ रही है।
एक डरावना सपना अब हकीकत में बदल गया है—
वो चीज़ जो तुम्हारे बिस्तर के नीचे रहती थी।

और अब वो तुम्हारे पास है, तुम्हारे चेहरे पर उसका हाथ,
वो कहती है—वापस स्वागत है, तुम्हारे सबसे अंधेरे ख्यालात!






अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...