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नहीं, हर थकान काम की नहीं होती,
कुछ बोझ दिल पर भी रखे जाते हैं।
हर बार शब्दों से नहीं,
कभी-कभी चुप्पी से भी जवाब दिए जाते हैं।
जब अपनी साँसों को थामकर,
किसी और की तिलमिलाहट को सहना पड़े...
तो ये थकावट शरीर से नहीं,
रूह से उतरने लगती है।
हर दिन अपनी भावनाओं को
कसकर बाँध लेना,
और किसी और की बिखरी हुई दुनिया
अपने भीतर समेट लेना —
ये सेवा नहीं,
ये खुद से ग़द्दारी बन जाती है।
तुम कमज़ोर नहीं हो,
अगर तुम थके हुए हो।
तुम बस इंसान हो —
जिसे भी ज़रूरत है
एक ऐसी जगह की
जहाँ साँसें सिर्फ चलें,
लड़ें नहीं।
तुम्हें चाहिए ‘सुरक्षा’,
ना कि सिर्फ ‘संघर्ष से बचाव।’
ताकि ज़िन्दगी महज़ जीने की चीज़ न रहे,
बल्कि महसूस करने लायक हो।
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