दूसरों के दुख में डूब जाना,
मानो अपनी नाव को खुद ही जलाना।
उनकी तकलीफें तुम्हें खींच ले जाएंगी,
जहाँ तुम्हारा अस्तित्व ही खो जाएगा।
भावनाओं का यह खेल बड़ा अजीब,
दुख संक्रामक है, जैसे कोई रोग करीब।
तुम समझते हो कि तुम मदद कर रहे हो,
पर धीरे-धीरे, खुद को ही खत्म कर रहे हो।
डूबते इंसान को सहारा देना,
सच में सुंदर और नेक लगता है।
पर जब वह तुम्हें पकड़कर खींचे,
तुम्हारी सांसों को चुरा लेता है।
दया का यह भ्रम बड़ा गहरा,
जहाँ तुम अपना जीवन खो देते हो ठहरा।
दूसरे की पीड़ा को बांटना अच्छा है,
पर खुद को जलाकर कोई दीपक नहीं बचा है।
संतुलन बनाना जरूरी है,
अपनी आत्मा को बचाना जरूरी है।
दूसरों की मदद करो, पर अपनी सीमा जानो,
वरना उनकी निराशा में तुम खुद को हार मानो।
याद रखो, दुख का समुद्र विशाल है,
हर कोई उसे पार नहीं कर सकता।
अपना जीवन कीमती है, इसे व्यर्थ मत करो,
दूसरों की पीड़ा में खुद को मत खोओ।
दूसरों के दुख में डूबकर,
अपना जीवन बर्बाद मत करो।
सहानुभूति और विवेक का संतुलन रखो,
दूसरों की मदद करो, पर खुद को बचाए रखो।