सन्नाटे की गहराई में, जब प्रवेश हो जाता है,
कोई और नहीं होता वहाँ, सिर्फ़ स्वयं का पता लगता है।
ख़ामोशी का आलिंगन, जब हृदय को छू लेता है,
भावनाओं का प्रवाह थमता, मन शांत हो जाता है।
विचारों की भीड़, जो सदा शोर मचाती थी,
अब मौन की छाया में धीरे-धीरे मिट जाती है।
संवेदनाएँ और अनुभूतियाँ, जो हमें जकड़े रखती थीं,
सन्नाटे के इस महासागर में विलीन हो जाती हैं।
अकेलापन नहीं अभिशाप, यह तो वरदान है,
स्वयं से साक्षात्कार का यह अनोखा निदान है।
जहाँ न कोई प्रश्न रहता, न उत्तर की तलाश,
बस अस्तित्व का आनंद, और आत्मा का प्रकाश।
हर भाव, हर संवेदना जब अपना रंग छोड़ देती है,
तब "मैं" का अस्तित्व केवल शुद्धता में डूब जाता है।
यह अकेलापन नहीं, यह तो पूर्णता की पहचान है,
जहाँ सिर्फ़ "मैं हूँ", और सारा ब्रह्मांड मेरा स्थान है।
तो आओ, इस मौन के पथ पर चलें,
हर बंधन और भ्रम को पीछे छोड़ दें।
अकेलेपन में छुपा है सच्चा स्वर्ग,
जहाँ आत्मा गाती है अपनी नितांत धुन।