"स्वयं को चुनो," यह तो मात्र एक इच्छा है,
पर क्या यह सत्य की राह दिखा सकती है?
वेदांत कहता है— "निज सुख में मत बहो,
श्रेयस की खोज करो, कल्याण को चुनो।"
स्वयं को चुनना यदि मोह से प्रेरित है,
तो वह बंधन ही बन जाएगा,
पर यदि सत्य, धर्म और ज्ञान से जुड़ा है,
तो वही मुक्ति का द्वार बन जाएगा।
श्रेयस का मार्ग कठिन है,
यह केवल सुख की चाहत नहीं,
बल्कि आत्मानुभूति की साधना है,
जहाँ मैं नहीं, बस सत्य रह जाता है।
"यः पश्यति स पश्यति"— जो देखता है, वह सच में देखता है,
जो शरण लेता है सत्य में, वही वास्तव में मुक्त होता है।
तो क्या मैं स्वयं को चुनूँ, या सत्य को?
उत्तर यही है— जब मैं सत्य को चुनूँगा,
तभी सृष्टि वास्तव में मुझे चुनेगी।