मैंने देखा है,
धोखे की पहली सीढ़ी चढ़ते हुए,
कदम हल्के होते हैं,
जैसे यह कोई साधारण खेल हो।
पर खेल की आदत जब गहरी हो जाती है,
तो यह जीवन की सच्चाई बन जाती है।
पहले मैंने दूसरों को धोखा दिया,
सच को उनके सामने छिपाया।
मुझे लगा,
मैं चतुर हूँ, मैं कुशल हूँ।
पर यह चतुराई कब जाल बन गई,
मुझे खबर न हुई।
झूठ की डोर जब लंबे समय तक खिंचती है,
तो एक दिन तुम्हारे ही गले में फँस जाती है।
मैंने दूसरों के लिए गड्ढे खोदे,
पर वह गड्ढे मेरी ही कब्र बन गए।
मैंने सच से मुँह मोड़ा,
पर उस मुँह मोड़ने में,
मैंने खुद से मुँह मोड़ लिया।
अब मैं अपने ही प्रतिबिंब को
धुंधला देखता हूँ।
यह धुंध झूठ की है,
जिसे मैंने हर बार सच के ऊपर बिछाया था।
किसी ने सच कहा,
"दूसरों को धोखा मत दो,
क्योंकि यह अभ्यास एक दिन तुम्हें
तुम्हारे ही खिलाफ कर देगा।"
मैंने वह चेतावनी सुनी थी,
पर उसकी गहराई को समझा नहीं।
आज मैं खड़ा हूँ
अपनी ही बनाई भूलभुलैया में।
मेरे झूठ इतने सुंदर थे,
कि मैंने उन्हें सच मान लिया।
मेरे धोखे इतने कलात्मक थे,
कि मैंने खुद को ही धोखा दे दिया।
अब मैं सच से भागता हूँ,
पर वह मेरा पीछा करता है।
हर कोने में, हर अँधेरे में,
वह मेरे सामने आ खड़ा होता है।
कभी आँसुओं में,
कभी खामोशी में,
सच मुझसे बात करता है।
वह कहता है,
"मैं हमेशा यहाँ था,
तुमने ही मुझे नकारा।
अब मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं,
तुम्हारे हर झूठ का हिसाब माँगूँगा।"
तो मैंने अब समझा है,
सच से मुँह मोड़ना
खुद से मुँह मोड़ने जैसा है।
धोखा दूसरों का नहीं,
यह आत्मा का अपराध है।
जो मैंने खोया है,
वह मैं ही जानता हूँ।
अब मैं सच का सामना करूँगा,
अपने झूठ के जाल को काटूँगा।
क्योंकि मैं जानता हूँ,
सच ही एकमात्र प्रकाश है,
जो अँधेरे को भेद सकता है।
सच ही मेरा पथ है,
जो मुझे खुद तक ले जाएगा।