तुलसी: पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक

### तुलसी: पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक

हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। तुलसी को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है और इसे हर भाग में पवित्र माना गया है। पद्म पुराण, उत्तर खंड, अध्याय 23 में वर्णित है कि न केवल तुलसी की पत्तियाँ, बल्कि इसके फूल, फल, तना और मिट्टी भी समान रूप से पवित्र और महत्वपूर्ण हैं।

#### धार्मिक महत्ता

तुलसी को देवी तुलसी के रूप में पूजा जाता है, जो भगवान विष्णु की परम भक्त मानी जाती हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, तुलसी के पौधे के नीचे भगवान विष्णु स्वयं विराजमान होते हैं। इसलिए तुलसी का पौधा घरों में विशेष स्थान पर लगाया जाता है और इसकी नियमित पूजा की जाती है।

#### तुलसी के विभिन्न अंगों की पवित्रता

पद्म पुराण में यह वर्णित है कि तुलसी का हर भाग पवित्र और महत्वपूर्ण है:

- **पत्तियाँ**: तुलसी की पत्तियाँ भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं और इन्हें धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान प्राप्त है।
- **फूल**: तुलसी के फूल भी उतने ही पवित्र माने जाते हैं और पूजा में उपयोग किए जाते हैं।
- **फल**: तुलसी के फलों का भी धार्मिक महत्व है और इन्हें पवित्र माना जाता है।
- **तना**: तुलसी का तना भी पवित्र होता है और इसका उपयोग धार्मिक क्रियाओं में किया जाता है।
- **मिट्टी**: तुलसी के पौधे की मिट्टी भी उतनी ही पवित्र मानी जाती है जितना उसका पौधा।

#### तुलसी और मोक्ष

पद्म पुराण में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति की अंत्येष्टि में तुलसी की टहनियों का उपयोग किया जाए, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह भगवान विष्णु के वैकुंठ में स्थान पाता है। यह मान्यता तुलसी की पवित्रता और उसके धार्मिक महत्व को दर्शाती है।

#### तुलसी का दीपक

तुलसी की लकड़ी से दीपक जलाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यदि तुलसी की लकड़ी से भगवान विष्णु के लिए दीपक जलाया जाए, तो इसे लाखों दीपों का समर्पण माना जाता है। यह तुलसी के पौधे की पवित्रता और उसकी दिव्यता का प्रतीक है।

#### निष्कर्ष

तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्रता, भक्ति और मोक्ष का प्रतीक है। इसके हर भाग को पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। तुलसी की पूजा और उसके उपयोग से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और अंत्येष्टि में इसका उपयोग मोक्ष की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। तुलसी की दिव्यता और पवित्रता ने इसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान दिया है और इसे हर घर में पूजा जाता है।

ध्यान का अनुभव



ध्यान कोई कर्म नहीं, यह प्रेम सा गिरना है,
मन की हलचल थम जाए, यह एक बहना है।
न कोई प्रयास, न कोई गंतव्य,
यह तो बस स्वयं में खोने का क्षणव्य है।

जहां शून्यता गूंजे, वहां ध्यान है,
जहां कोई स्वर न हो, वह स्थान है।
जहां मन रुके, और समय ठहर जाए,
वह क्षण ध्यान के सागर में उतर जाए।

जैसे सूरज का रंग शाम में ढलता,
जैसे फूल से खुशबू धीरे-धीरे छलकता।
वैसे ही ध्यान, प्रेम की तरह बहता,
यह अस्तित्व के संग गहराई में रहता।

न तुम करो, न कोई प्रयास यहां,
बस मौन में डूबो, यह मार्ग है वहां।
जहां होना भी न होने में बदल जाए,
ध्यान वही है, जहां सब शून्य समा जाए।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...