मैं चाहता हूँ,
लोग सीखें ‘ना’ को भी
इज़्ज़त देना,
ना कि हर असहमति को
अपमान समझ लेना।
हर रिश्ता जो छूट गया,
वो हार नहीं था,
शायद वो मेरे लिए बना ही नहीं था।
और मैं अब जानता हूँ —
मुझे वही चाहिए,
जो मुझे पूरी तरह स्वीकारे,
बिना बदले, बिना शर्त।
मैं नहीं चाहता वो लोग,
जो बस आधे मन से आएं,
जो मुझे किसी साँचे में ढालने की कोशिश करें।
मैं उन आँखों में रहना चाहता हूँ,
जो मेरी सच्चाई पर मुस्कुराएँ।
इन्कार में भी एक सम्मान होता है,
क्योंकि जब कोई कहता है, "तू मेरे जैसा नहीं,"
वो मेरे जैसे किसी के लिए जगह खाली करता है।
तो अब जब कोई दरवाज़ा बंद होता है,
मैं बुरा नहीं मानता,
बल्कि शुक्रिया कहता हूँ —
क्योंकि हर ‘ना’ मुझे मेरे ‘हाँ’ के करीब लाता है।
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