जब प्रेम से हट जाएं वासना और मोह,
जब प्रेम हो निर्मल, निष्कलंक, अद्वैत,
जब प्रेम में हो सिर्फ देना, न कोई माँग,
जब प्रेम हो समर्पण, न कोई आशा,
जब प्रेम हो सम्राट, न कोई भिखारी;
जब आप प्रसन्न हों इस बात पर
कि किसी ने आपके प्रेम को अपनाया,
तब समझो, सच्चा प्रेम है।
प्रेम की नदी बहे बिना किनारे,
प्रेम की धूप फैलाए उजाले,
प्रेम की चाँदनी छाए बिना रात,
प्रेम की गंगा हो पवित्र, सात्विक,
जब प्रेम हो निःस्वार्थ, निःशंक, निराकार,
तब समझो, प्रेम का साम्राज्य है।
प्रेम हो जब मुक्त, बिन किसी बंधन के,
प्रेम हो जब संतुष्टि, बिना किसी तृष्णा के,
प्रेम हो जब संवेदनाओं का पर्व,
प्रेम हो जब आत्मा की पुकार,
तब समझो, प्रेम का महासागर है।
प्रेम हो जब संतोष, बिन किसी अपेक्षा के,
प्रेम हो जब अभय, बिना किसी डर के,
प्रेम हो जब आनंद, बिना किसी कारण के,
प्रेम हो जब अनंत, बिन किसी सीमा के,
तब समझो, प्रेम का परम सत्य है।
तब प्रेम बन जाता है शाश्वत,
प्रेम बन जाता है असीम,
प्रेम बन जाता है परिपूर्ण,
प्रेम बन जाता है दिव्य,
तब प्रेम है, सच्चा प्रेम।
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