मैं खुद को कभी उड़ान में पाता हूँ,
और कभी ठहराव में।
मन की गहराई में खो जाता हूँ,
कभी दौड़ते हुए, कभी खुद से दूर होते हुए।
शायद उड़ान है मेरी पहली प्रतिक्रिया,
जब डर घेरता है,
तो मैं पीछे हट जाता हूँ,
कभी खामोशी से, कभी छुप कर,
बस दूर चला जाता हूँ।
फिर आता है ठहराव,
जिसमें कुछ पल की खामोशी मिलती है।
मानो कुछ भी महसूस नहीं हो रहा,
सिर्फ समय ठहरा हुआ है।
मैं खुद को तलाशता हूँ,
लेकिन कभी-कभी लगता है कि रास्ता ही नहीं मिलता।
जब आप आत्म-सुधार के मार्ग पर होते हैं,
तो कभी खुद को उड़ते हुए पाते हैं,
कभी ठहरते हुए,
कभी खुद को समझने की कोशिश करते हुए।
हर कदम पर डर और आत्म-संशय साथ होते हैं,
लेकिन फिर भी प्रयास जारी रहता है।
आपके गुस्से से लड़ाई का तात्पर्य है,
लेकिन यह इतना आसान नहीं है।
गुस्सा कभी मुझे घेरता है,
फिर मैं खुद को सुलझाने की कोशिश करता हूँ,
लेकिन गुस्से की धारा मुझे संतुलन खोने देती है।
फिर भी, मैं जानता हूँ,
सिर्फ उड़कर या ठहरकर नहीं,
लड़ाई में भी ताकत होती है।
अगर मैं खुद को उसमें ढाल पाऊं,
तो शायद मैं अपनी असली शक्ति को पा सकूं।
फिर भी, यह यात्रा निरंतर है,
हर कदम पर खुद से लड़ना है,
हर पल में अपनी प्रतिक्रियाओं को समझना है,
ताकि मैं एक मजबूत और शांत संस्करण बन सकूं।