सन्नाटे के शोर में

सन्नाटे के शोर में


अभी दिन ढला ही नही
और आंखो में तेरा चेहरा नजर आ गया
जब देखी तेरी नजर पाया तेरी पाया
तेरी नजर में खुद की नजर !
फिर ढली है  शाम
और खिल गए अरमान
तरनुम से जो तुम मुझे छूती हो
कायनात पूरी मेरे कदमो से गुजरती है !
सन्नाटे के शोर में
कानो में तो मिश्री सी घोलती है
अंधेरे के भोर में
आंखो में ख्वाब को बोती तू |  

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...