सन्नाटे के शोर में
अभी दिन ढला ही नही
और आंखो में तेरा चेहरा नजर आ गया
जब देखी तेरी नजर पाया तेरी पाया
तेरी नजर में खुद की नजर !
फिर ढली है शाम
और खिल गए अरमान
तरनुम से जो तुम मुझे छूती हो
सन्नाटे के शोर में
कानो में तो मिश्री सी घोलती है
अंधेरे के भोर में
आंखो में ख्वाब को बोती तू |
आंखो में ख्वाब को बोती तू |