शरीर की सराहना



यह अच्छा रहा, टिकाऊ और स्थिर।
जीवन की हर जंग में मेरा साथी,
हर सफर में मेरा हमराही।

शिकायतें कम, सहयोग ज्यादा।
यह शरीर, मेरा पहला घर,
जिसने हर चोट, हर दर्द सहा।

अगर फिर से मिले ऐसा ही,
तो कोई गिला नहीं।
क्योंकि यह न केवल मेरा था,
यह मैं था—हर पल, हर क्षण।

एक और ऐसा ही?
हाँ, क्यों नहीं।
सहज, सरल,
और हमेशा मेरे साथ।


आधुनिक संस्कृति का त्याग: सत्य की खोज


आधुनिक युग में, जहाँ लोग अल्कोहल, टेलीविजन और मुख्यधारा की संस्कृति में डूबे रहते हैं, वहाँ कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इन सब का त्याग कर सच्चे आनंद की खोज की है। यह आनंद उन्हें उपवास, संस्कृत, कर्मों की शुद्धि, गायों की सेवा और प्रकृति के अद्भुत उपहारों में मिलता है। 

#### उपवास का महत्व
उपवास न केवल शारीरिक शुद्धि का माध्यम है, बल्कि यह मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति का भी स्रोत है। जैसा कि भगवद गीता में कहा गया है:

"युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥"

अर्थात, जो व्यक्ति संतुलित आहार, गतिविधियों, कार्यों और नींद का पालन करता है, वह योग द्वारा सभी दुःखों से मुक्त हो जाता है।

#### संस्कृत: भाषा की महिमा
संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि ज्ञान का महासागर है। इसमें इतने गहरे और सुंदर श्लोक हैं जो हमारी आत्मा को स्पर्श करते हैं। जैसे:

"सा विद्या या विमुक्तये।"

अर्थात, वास्तविक शिक्षा वही है जो हमें मुक्त कर दे। संस्कृत हमें उस शिक्षा की ओर ले जाती है जो हमें बंधनों से मुक्त कर सकती है।

#### कर्मों की शुद्धि
कर्मों की शुद्धि आत्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। हमारे हर कार्य का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। स्वच्छ और शुद्ध कर्म हमें सच्चे आनंद की ओर ले जाते हैं। जैसे तुलसीदास जी ने कहा है:

"कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा॥"

#### गायों की सेवा
भारतीय संस्कृति में गायों को माता का दर्जा दिया गया है। गायों की सेवा करना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। गौसेवा से हमें अद्भुत शांति और संतोष प्राप्त होता है।

#### प्रकृति के उपहार
प्रकृति हमें निरंतर अद्भुत उपहार देती रहती है। उसकी गोद में समय बिताना, उसके पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों के साथ रहना हमें सच्चा सुख और शांति प्रदान करता है। 

"प्रकृति के कण-कण में बसी है प्रभु की मूरत,
उसकी छांव में है समाहित हर सूरत।"

#### निष्कर्ष
मुख्यधारा की संस्कृति का त्याग करके और उपवास, संस्कृत, कर्मों की शुद्धि, गायों की सेवा और प्रकृति के उपहारों में आत्मसात होकर हम सच्चे आनंद और शांति की प्राप्ति कर सकते हैं। यह सत्य की वह खोज है जो हमें वास्तविकता की ओर ले जाती है और हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है।

### सत्य की खोज में हम सभी को शुभकामनाएं!

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...