शरीर की सराहना



यह अच्छा रहा, टिकाऊ और स्थिर।
जीवन की हर जंग में मेरा साथी,
हर सफर में मेरा हमराही।

शिकायतें कम, सहयोग ज्यादा।
यह शरीर, मेरा पहला घर,
जिसने हर चोट, हर दर्द सहा।

अगर फिर से मिले ऐसा ही,
तो कोई गिला नहीं।
क्योंकि यह न केवल मेरा था,
यह मैं था—हर पल, हर क्षण।

एक और ऐसा ही?
हाँ, क्यों नहीं।
सहज, सरल,
और हमेशा मेरे साथ।


No comments:

Post a Comment

Thanks

मैं, अच्छा और बुरा का साकार रूप

मैं, जो अच्छा कहलाता, मैं, जो बुरा कहलाता, मैं सत्य का अंश, मैं मिथ्या का नाता। दो ध्रुवों के बीच, मेरा अस्तित्व छिपा, मैं ही प्रकाश, मैं ही...