जो असल में परवाह न करने की राह पर चलता है,
उसे न सिर्फ़ एक बार, हर दिन खुद को ढलना होता है।
आंतरिक शांति का हासिल करना,
कभी आसान नहीं होता, पर यह जीवन की सच्चाई है।
हर वक़्त के ताज़ा संघर्ष में,
हर ज़रा-ज़रा छोड़ने की साधना करनी होती है।
मन के भीतर की उम्मीदों को,
हर दिन धीरे-धीरे सुला देना होता है।
न सिर्फ़ बाहरी परवाह से मुक्ति,
लेकिन अंदर की इच्छाओं की चाह से भी।
हर छोटी चिंगारी को बुझाना,
ताकि सच्ची शांति मिल सके।
कभी मन में उठते सवालों को,
संयम से शांत करना होता है।
जितनी बार तुम खुद को बदलते हो,
उतनी बार खुद को पा लेते हो।
यह परवाह न करना एक यात्रा है,
जो हर दिन के संघर्ष में बसी रहती है।
पर जो इस साधना को अपनाता है,
वही अंत में खुद की असली ताकत जानता है।