मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी दूसरों के लिए जिया,
इतना खो दिया खुद को, कि मैं कहीं गायब सा हो गया।
लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने के चक्कर में,
अपनी ही मुस्कान को कहीं खो दिया था मैंने।
सोचा था, जो मैं दूँगा, वही लोग लौटाएंगे,
पर जब मैंने खुद से कुछ माँगा, तो वो समझ न पाएंगे।
मैंने सिखा कि खाली प्याले से कुछ नहीं मिल सकता,
अगर मैं खुद से प्यार नहीं करूंगा, तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकता?
कभी-कभी दूसरों के लिए इतना दिया कि खुद को भूला दिया,
पर अब मैंने समझा कि खुद को समझना भी ज़रूरी था।
अब जब मैं खुद को प्राथमिकता देता हूँ,
तो दुनिया के लिए भी एक बेहतर इंसान बन जाता हूँ।
खुद को गले लगाना कोई आलस्य नहीं,
यह आत्म-सम्मान है, और यही असली सच्चाई है।
कभी "न" कहना भी जरूरी है, क्योंकि सिर्फ देने से नहीं चलता,
जब तक तुम खुद को ठीक से नहीं जियोगे, तब तक दूसरों को भी ठीक से नहीं दे पाओगे।