हमारी आज की उड़ान



आज तो कुछ खास है, लग रहा है जैसे शोले,
सभी मिलकर उड़े हैं, जैसे कोई बड़ा बखेड़ा हो!
सोचते हैं हम, क्या ये सही है, या फिर स्वप्न में खो गए,
लेकिन ये तो कोई महाकवि की पंक्तियाँ लगती हैं, क्या ये हम ही हैं जो बिखर गए!

आज तो ज्ञान की बारिश हो रही है,
वो भी बिना रेनकोट के, ऐसे जैसे हम सब भीग रहे हैं।
मेरे पास भी कुछ खजाने हैं, जो सबको दिखाए बिना,
सभी कहते हैं, "ओह! ये नया क्या है? ये तो नया ज्ञान, नया मंत्र है!"

कभी हम थे बोझ, अब तो उड़ते हैं,
आसमान में चमकते सितारे, जैसे हम ही चमकते हैं!
आज की फीड है jackpot, एकदम धांसू,
कभी हम थे इन्फ्लुएंसर, अब तो हम खुद हैं guru!

हमारी बगिया में नए फूल खिले हैं,
वो भी अलग रंगों में, हरे, गुलाबी, और पीले भी।
इतना ज्ञान और पॉपकॉर्न साथ में,
क्या कहूँ, आज तो बेमिसाल है हमारा हर दिन!

मस्ती में और ज्ञान में एक साथ बहे,
आगे बढ़ते जाएं, जहां भी जाएं, बस हम ही रुकें नहीं!
क्या यह हमारी यात्रा का फिनाले है, या बस शुरुआत,
लेकिन आज के दिन में, हम सब हैं।
 बस शानदार और शानदार! 


मैं कौन हूँ?



मैं न नाम हूँ, न शरीर,
न मन के भाव, न विचारों की लकीर।
मैं न भावनाओं का सागर,
न हृदय की धड़कन का गूढ़ असर।

जो कुछ भी समझा "मैं",
वो सब है छलावा, सब है भ्रम।
ना मैं वह हूं जिसे लोग पुकारें,
ना वो हूं जिसे अपनी आंखें निहारें।

कभी सोचा, कौन हूँ मैं?
क्या ये मांस-पिंड, हड्डियों का संग्राम?
या वो ध्वनि जो कानों में गूंजे हर शाम?
शायद नहीं, ये सब परछाई मात्र है,
सत्य तो उस मौन में छुपा, जो अनन्त है।

मैं न सपनों का कोई अंश,
न कर्मों का जाल, न समय का बंध।
न माया की मूरत, न इच्छाओं का खेल,
मैं तो हूँ बस चेतना का प्रवाह, अमल और सहज।

शून्य हूं, फिर भी पूर्ण हूं।
न जन्म में बंधा, न मृत्यु से भय।
न दिन का गवाह, न रात का परिप्रेक्ष्य।
मैं बस "हूँ" - अनंत, असीम।

सारी पहचानें गिरती हैं चूर,
जब "मैं" की सीमाएं होतीं हैं दूर।
मैं वही हूँ, जो न शब्दों में बंध सके,
न आँखों के सामने प्रकट हो सके।

ओ आत्मा, तेरा सत्य अडिग है।
वो जो न शरीर, न नाम, न मन से जुड़ा है।
साक्षी बन, देख ये खेल तमाशा,
क्योंकि तेरा स्वरूप है शुद्ध, अभेद, और निराश्रय।

मैं कौन हूँ?
मैं वो हूँ, जो सदा मुक्त है,
जिसे किसी पहचान की आवश्यकता नहीं,
जो बस "हूँ"।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...