उत्तरकाशी का आह्वान




जब भी मैं उत्तरकाशी का मन बनाता हूँ,
एक अनजानी ऊर्जा मुझसे लिपट जाती है।
यह केवल उड़ान भरने का विषय नहीं,
यह तो मेरे भीतर के "चेतन"  का जागरण है।

पहाड़ों की ओर कदम बढ़ते ही,
एक अदृश्य क्षेत्र मुझे छूता है।
"प्रकृति" के हर अंश में,
मुझे अपनी आत्मा का स्वर सुनाई देता है।

यह "अद्वितीय"  अनुभव है,
जहाँ शब्द असमर्थ हो जाते हैं।
अगर तुम "संवेदनशील" हो,
तो यह ऊर्जा तुम्हारे हृदय को झकझोर देगी।

पहाड़ों की गहराई में, "शांति" का वास है,
जहाँ हर शिखर पर "अनुभूति"  का विस्तार है।
यह केवल बाहरी यात्रा नहीं,
यह तो भीतर की "अध्यात्मिकता" का आह्वान है।

जब "सुर" और "साधना"  के साथ जुड़े रहते हैं,
तो यह ऊर्जा सदा तुम्हारे साथ रहती है।
उत्तरकाशी का हर कण,
जैसे "दिव्यता"  संदेश है।

मैं जब-जब वहाँ की ओर बढ़ता हूँ,
मेरा अस्तित्व एक नई "चेतना"  में ढल जाता है।
यह स्थान केवल भौगोलिक नहीं,
यह तो "ब्रह्मांड"  की आत्मा है।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...