हमारे पास है धन, शक्ति और विज्ञान,
चिकित्सा का ज्ञान और प्राचीन प्रमाण।
समुदाय में प्रेम, सह-अस्तित्व का भाव,
फिर क्यों अंधकार में डूबा यह स्वभाव?
सर्वत्र है साधन और सामर्थ्य का भंडार,
फिर भी अधूरा क्यों है जीवन का संसार?
विज्ञान ने सुलझाए रोगों के जाल,
फिर क्यों अधूरी है मानव की चाल?
जो ज्ञानी हैं, उनके हाथ में होनी थी डोर,
पर सत्ता संभाली है जिनका चेतना से नहीं जोर।
वे मूढ़, अविवेकी, और अज्ञानी हैं,
न कोई दृष्टि, न उद्देश्य महान हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः का सपना अधूरा,
धर्म का अर्थ बना राजनीति का फंदा।
जहां होनी थी मुक्ति, वहां बंधन ही बंधन,
भ्रष्ट सोच ने हर दिल में भरा क्रंदन।
पर क्या यह अंत है, या एक नई शुरुआत?
क्या जागेगा मानवता का विराट?
जहां हर जीवात्मा हो आनंदमय,
जहां प्रज्ञा का हो मार्ग प्रशस्तमय।
आओ, चलें उस सत्य की ओर,
जहां करुणा हो हर हृदय का शोर।
जहां योग और ध्यान बने आधार,
जहां हो मानवता का नया संसार।
क्योंकि हमारे भीतर है वह शक्ति अपार,
बस चाहिए धैर्य, और संकल्प का संचार।
जो अंधकार में हैं, उन्हें मार्ग दिखाएं,
मानव स्वर्ग की ओर कदम बढ़ाएं।