बारिश जब थम जाए, छतरी बोझ लगने लगे,
वफ़ा की राहों में, नफ़रत की खुशबू बहे।
जब जरूरत हो छतरी की, फिर खोजेंगे सब,
पर उस वक्त तक, क्या खो गई वो छतरी, दाब में दब।
छतरी तो वहीं है, बस नज़दीकियों की दूरियां बढ़ी,
उसने तो हमेशा दी थी, पर छूटी हर घड़ी।
जिसने दिया सहारा, उसका क्या हुआ एहसास?
अब वो छतरी फिर न आएगी, ये है मन का उदास।
हर मुस्कान का रंग नहीं, सच का हर रंग है नहीं,
कभी-कभी ये दिखती, सिर्फ जलन का अंग है यही।
हर वार का जवाब, ज़रूरी है फिर से समझना,
इस दुनिया का संतुलन, इसी में है खुद को बांधना।
छतरी की कहानी में, हमें ये समझना है,
जो भी छुपा हो भीतर, वो हमेशा बनता रहना है।
सच्ची वफ़ा की पहचान, ना हो एक पल की बात,
उसकी गरिमा में है सदा, प्यार और सुरक्षा की मात।
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