पूर्णता का संकल्प



शरीर— लोहे सा कठोर,
हर चुनौती को झेलने को तैयार।
पसीने की हर बूंद में लिखा है,
सहनशक्ति का अमर विचार।

मन— एक स्थिर सरोवर,
न आंधी, न तूफ़ान डगमगा सके।
न सुख, न दुख इसे हिला सके,
बस सत्य का दीप जला सके।

आत्मा— योद्धा की भांति प्रबल,
जो घुटने टेकना सीखा नहीं।
हर हार से मजबूत हुआ,
हर दर्द से सीखा, झुका नहीं।

हृदय— कवि की तरह कोमल,
हर भाव में गहराई बसी।
जहाँ प्रेम भी, आग भी,
जहाँ शांति भी, विद्रोह भी।

यही लक्ष्य है, यही साधना,
अथक यात्रा, अनंत साधना।


त्याग की तपस्या में मैंने जीवन गुज़ार दिया,

त्याग की तपस्या में मैंने जीवन गुज़ार दिया,
सपनों के पीछे हर रात सोकर मैंने बिसार दिया।

मगर वो फल ना मिला, जो मेरा हक़दार था,
मेरे प्रयासों का वो मुक़ाम ना बना, जो मेरा किरदार था।

फिर भी हार नहीं मानी मैंने, उम्मीद का दामन थामे रखा,
क्योंकि सच्चे मेहनती का कभी साथ नहीं छोड़ता तक़दीर का तका।

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...