पूर्णता का सत्य



जो कुछ मैं चाहता हूँ,
वह मेरी ओर बढ़ रहा है,
जैसे सूर्य की किरणें
अंधकार को चीरती हैं।
हर सपना, हर आकांक्षा,
अपने समय पर मेरी होगी।

लेकिन जो आवश्यक है,
वह तो पहले ही मेरे भीतर है।
शांति, साहस, और प्रेम,
ये सब मेरे ही अंश हैं।
मैं पूर्ण हूँ,
जैसे नदी अपने प्रवाह में।

"आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति।"
(अपनी आत्मा की तृप्ति के लिए ही
सब कुछ प्रिय हो जाता है।)

मेरे भीतर शक्ति का स्रोत है,
जो किसी बाहरी परिस्थिति का मोहताज नहीं।
हर आवश्यकता का समाधान,
मेरी आत्मा की गहराई में छिपा है।

इस विश्वास के साथ,
मैं हर दिन बढ़ता हूँ।
जो चाहूँगा, उसे पा लूँगा।
जो पाऊँगा, उसका आदर करूंगा।
क्योंकि जीवन का सबसे बड़ा सत्य यह है—
सब कुछ मेरे भीतर से ही शुरू होता है।


लेखनी - जो स्वयं लिखती है

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