आघात और उसके प्रभाव



मैंने महसूस किया है, आघात का असर,
जो मेरे दिमाग को, भीतर से बदल देता है।
यह बस एक पल का दर्द नहीं होता,
यह एक गहरी छाया होती है, जो हमेशा साथ रहती है।

लोग कहते हैं, "अपने अतीत को छोड़ दो,"
लेकिन क्या वो समझते हैं, यह आसान नहीं है।
आघात केवल यादें नहीं छोड़ता,
वो हमारे दिमाग की धारा को मोड़ देता है।

मेरे अंदर की हर एक कोशिका में,
यह जख्म अपनी जगह बनाता है,
जैसे एक सीने में दबा हुआ तूफान,
जो धीरे-धीरे बाहर निकलता है, समय के साथ।

कभी-कभी मुझे लगता है,
क्या सच में कोई इसे समझ सकता है?
यह केवल अतीत नहीं, बल्कि एक असल लड़ाई है,
जो हर रोज़ हमें अपने आप से करनी पड़ती है।

लोग कहते हैं, "बस छोड़ दो,"
लेकिन मैं जानता हूँ, यह शब्द उतने सरल नहीं हैं।
आघात का असर वही जान सकता है,
जिसने उसे जीया है, जिसे वो छुपा नहीं सकता।

तो मैं कहता हूँ,
अगर तुम मुझे समझना चाहते हो,
तो पहले मेरी यादों में घूमें,
उस आघात को महसूस करो,
फिर कहो, "बस छोड़ दो।"


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...