एक ही पल के दो इतिहास


मैंने उस पल को सींचा है असंख्य साँसों की नमी से,  
तुम्हारी आँखों का वो झपकना मेरे समय का पेड़ बन गया।  
जब तुम्हारी उँगलियाँ मेरी कलाई से टकराई थीं बारिश में,  
मेरी नसों ने उस छूआ को सदी का भूगोल बना लिया।  

तुम्हारे हँसने की आवाज़—एक पन्ना जिसे मैंने स्याही दी,  
तुम्हारे लिए वो बस हवा में लटका धुआँ था, बिना मतलब का।  
मेरी यादों के संग्रहालय में तुम्हारी बातें सजी हैं,  
तुम्हारी स्मृतियों के कूड़ेदान में वो अख़बार का टुकड़ा है।  

वो शाम जब तुमने कहा था "चलो, यहाँ से निकलते हैं"—  
मेरे दिल ने उसे गद्य की जगह महाकाव्य बना डाला।  
तुम्हारे कंधे का वो झुकाव, हवा में उड़ते तुम्हारे बाल,  
मेरी आँखों ने उन्हें फ्रेम कर दिया... तुम्हारी नज़रों ने गिरा दिया।  

तुम्हारे लिए तो वो बातचीत बस एक साँस थी—  
लेने के बाद छोड़ दी, जैसे फूल मुरझाकर गिर जाता है।  
मेरे लिए वो साँस अब भी जिंदा है फेफड़ों में,  
जलता हुआ कोयला जो राख होने से इनकार करता है।  

मैं अब भी उस रास्ते पर बैठा हूँ जहाँ तुम रुकी थीं पानी माँगने,  
तुम्हारे पैरों के निशान मिट गए, पर मेरी आस्था नहीं।  
तुम्हारे लिए तो वो पल बस एक "हैलो-गुडबाय" का गणित था,  
मेरे लिए वो अध्याय है जिसका अंत आज तक नहीं लिखा।  

क्या तुम जानते हो?  
तुम्हारी भूली हुई चीज़ें मेरे शहर की नींव हैं—  
तुम्हारी उदासीनता की ईंटें, मेरे पसीने की सीमेंट,  
इमारत ढहती नहीं... बस ऊँची होती जाती है रातों में।  

मेरे दिन तुम्हारी यादों के पन्ने पलटते हैं,  
तुम्हारी रातें उन पन्नों को जलाकर उजाला करती हैं।  
एक ही पल के हम दो किनारे—तुम भूल गए, मैं डूब गया,  
समय की नदी में दो नावें... एक बह गई, एक अटक गई।