Open Sex Series – Part 14


"पुरुष की ऊर्जा, शिव तत्व और उसके डर – एक गहरे अनुभव की यात्रा"

जब भी सेक्स की बात होती है,
ज़्यादातर बातें स्त्री के अनुभव, उसकी शक्ति या उसकी भावनाओं पर केंद्रित होती हैं –
लेकिन पुरुष के भीतर भी एक ऐसा संसार है
जो अक्सर अनकहा, अनसुना और अनछुआ रह जाता है।


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मैंने खुद को जब गहराई से टटोला,

तो पाया कि मेरे भीतर दो चीज़ें लगातार टकरा रही थीं:

1. वासना और भय


2. प्रेम और मौन



एक ओर शरीर खिंचता था,
तो दूसरी ओर आत्मा डरती थी –
कहीं मैं टूट न जाऊँ, कहीं खो न जाऊँ।


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ओशो कहते हैं:

> “पुरुष का डर यह नहीं कि वह स्त्री में खो जाएगा,
बल्कि यह है कि वह स्वयं को कभी पूरी तरह नहीं दे पाया।”




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पुरुष की ऊर्जा – शिव तत्व क्या है?

शिव का अर्थ है –
पूर्ण शून्यता, अडोल मौन, निस्पंद चेतना।

जब पुरुष अपनी वासना से ऊपर उठता है,
तो वह साक्षी बनता है।

न वह भागता है

न वह पकड़ता है

बस देखता है

बस होता है


यही शिवत्व है।


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मेरा अनुभव – रात्रि की वह साधना

ये तब की बात है जब मैं रिशिकेश के पास एक ध्यान शिविर में गया था।
वहाँ एक ध्यान सत्र था – "पुरुष का मौन और स्त्री की ऊर्जा"।
उस ध्यान में पुरुषों को अकेले एक कमरे में बैठाया गया
और कहा गया –
"तुम्हें कुछ नहीं करना है – बस अपनी ऊर्जा को भीतर महसूस करना है।"

शुरू के 10 मिनटों में मेरी देह में अजीब बेचैनी थी।
मन बार-बार बाहर भाग रहा था,
कल्पनाएँ, कामनाएँ, डर...

लेकिन धीरे-धीरे
जब साँसें गहरी होने लगीं
तो एक गहराई भीतर उतरने लगी।


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तब मुझे महसूस हुआ कि मैं हमेशा ‘कुछ करना’ चाहता था।

छूना, पाना, जीतना।
लेकिन उस मौन में –
जब मैंने पहली बार खुद को पूरी तरह देखा,
तो एक शांत, विशाल, मौन पुरुष मेरे भीतर खड़ा था।
वो डरता नहीं था,
वो माँगता नहीं था।
वो सिर्फ देख रहा था –
वह शिव था।


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पुरुष का सबसे बड़ा डर क्या है?

1. विफलता का भय – सेक्स में अच्छा न कर पाने का डर।


2. अस्वीकृति का भय – कहीं स्त्री उसे अस्वीकार न कर दे।


3. अधिकार खोने का भय – क्योंकि उसने हमेशा सेक्स को ‘पाना’ समझा है।


4. खुद को पूरी तरह खोलने का डर – क्योंकि उसने रोना, टूटना, समर्पण करना सीखा ही नहीं।




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पुराने ग्रंथों में शिव क्या कहते हैं?

विज्ञान भैरव तंत्र में पार्वती पूछती हैं:

> "प्रेम क्या है? और मिलन क्या है?"



शिव उत्तर देते हैं:

> "जो मौन में विलीन हो जाए, वही सच्चा मिलन है।
जहाँ न इच्छा बचे, न पहचान – बस शून्यता रहे।"




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तो क्या पुरुष सेक्स के जरिए आत्मज्ञान पा सकता है?

हाँ —
अगर वह सेक्स को मौन से, प्रेम से, और समर्पण से जीता है।
अगर वह स्त्री को जीतने की जगह उसे समझता है।
और अगर वह खुद को खोलकर, रोकर, टूटकर
देह से आगे की यात्रा करता है।


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अंत में...

पुरुष होना आसान नहीं।
शिव बनना और भी कठिन है।
लेकिन जो पुरुष इस मार्ग पर चलता है –
वो न सिर्फ स्त्री को जान पाता है,
बल्कि खुद को भी मुक्त करता है।

Open Sex Series – Part 14 यही कहता है:

“सेक्स अगर सिर्फ जीतने का माध्यम है, तो तुम कभी प्रेम नहीं कर पाओगे।
लेकिन अगर तुम खुद को हार दोगे —
तो तुम्हारी चेतना शिव बन जाएगी।”


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