दुर्लभ शक्ति



एक शरीर— जो शस्त्र नहीं, पर शस्त्र से कम भी नहीं,
हर गति में सौंदर्य, हर चाल में ध्वनि।
हर मांसपेशी का नियंत्रण, हर क्षण संतुलन,
मानो स्वयं सृष्टि की लय में विलीन।

एक मन— जो झुकता है, पर टूटता नहीं,
जो समय के साथ बहता है, पर डगमगाता नहीं।
हर घाव को सीख में बदलने की कला,
हर तूफ़ान में स्थिर रहने की शक्ति।

एक आत्मा— जो हारकर भी उठती है,
जो हर गिरावट में नयी ऊंचाई देखती है।
जिसका संघर्ष ही उसकी परिभाषा है,
जो राख से भी नया सूरज रचती है।

एक हृदय— जो आज भी महसूस करता है,
इस शून्यता से भरी दुनिया में भी धड़कता है।
जो दर्द में भी प्रेम खोजता है,
जो कठोरता के बीच भी नर्म रहता है।

यही दुर्लभ शक्ति है, यही सच्ची विजय।


त्याग तपस्या करके हमने करियर की राह चुनी,

त्याग तपस्या करके हमने करियर की राह चुनी,
मगर फल वही ना पाया जो मेहनत ने हमसे कहा सुनी।

सपने बुने थे सोने की चादर में लिपटे हुए,
पर हकीकत की धरती पर सब टूट कर बिखरे हुए।

मेहनत के पसीने से सींचा था अपना आशियाना,
परंतु मंज़िल ने क्यों अपना वादा ही निभाना भुला दिया।

फिर भी हार नहीं मानेंगे, ये ठान ली है हमने,
क्योंकि राह में कांटे भी हैं और मंज़िलें भी हमने देखी हैं सपने।

त्याग तपस्या का दिया मैंने हर पल,

त्याग तपस्या का दिया मैंने हर पल,
फिर भी मिल न सका मंजिल का असल फल।

मेरे जज्बातों की बगिया में सूख गए फूल,
फिर भी उम्मीद का दीप जलता रहा धुल।

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...