मगर फल वही ना पाया जो मेहनत ने हमसे कहा सुनी।
सपने बुने थे सोने की चादर में लिपटे हुए,
पर हकीकत की धरती पर सब टूट कर बिखरे हुए।
मेहनत के पसीने से सींचा था अपना आशियाना,
परंतु मंज़िल ने क्यों अपना वादा ही निभाना भुला दिया।
फिर भी हार नहीं मानेंगे, ये ठान ली है हमने,
क्योंकि राह में कांटे भी हैं और मंज़िलें भी हमने देखी हैं सपने।