त्याग तपस्या का दिया मैंने हर पल,
फिर भी मिल न सका मंजिल का असल फल।
मेरे जज्बातों की बगिया में सूख गए फूल,
फिर भी उम्मीद का दीप जलता रहा धुल।
अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...
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