"Asexuality – जब मन ही नहीं चाहता"
> "जब सब शोर कर रहे हों प्यार की, देह की, स्पर्श की—
तब कुछ लोग बस चुप रहते हैं।
क्योंकि उन्हें चाहिए ही नहीं।"
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Asexuality क्या है?
Asexuality का अर्थ है —
जब कोई व्यक्ति किसी भी लिंग या व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण महसूस नहीं करता।
ना पुरुष, ना स्त्री, ना दोनों —
बस एक भीतर की स्थिरता।
पर इसका मतलब यह नहीं कि वो व्यक्ति प्यार, रिश्ते, या भावनात्मक गहराई नहीं चाहता।
बहुत से asexual लोग रोमांटिक संबंधों में होते हैं —
बस उनमें sex की इच्छा नहीं होती।
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Asexual होना कोई बीमारी नहीं है
समाज ने हमें यह सिखाया है कि
sex करना ज़रूरी है, प्राकृतिक है, और हर इंसान को करना चाहिए।
लेकिन asexuality इस सोच को चुनौती देती है।
कुछ लोगों के लिए sex बस एक biological function नहीं,
बल्कि आवश्यकता ही नहीं है।
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मेरा अनुभव – एक शांत तपस्वी से मुलाक़ात
मैं एक बार ऋषिकेश में गंगा किनारे बैठा था।
वहाँ एक युवा तपस्वी मिला — नाम था नयन।
बिलकुल आधुनिक पहनावा, आंखों में शांति, बोलचाल में प्रेम।
बातों-बातों में उसने कहा:
> "मुझे कभी किसी के साथ सोने की इच्छा ही नहीं हुई।
ना स्त्री, ना पुरुष।
मुझे लगता है, मेरी ऊर्जा किसी और दिशा में बह रही है।"
वो संगीत रचता था, ध्यान करता था, नदी को सुनता था।
मैंने उसकी आँखों में एक अद्भुत शांति देखी —
जो मैंने बहुत कम लोगों में देखी थी।
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Types of Asexual People
1. Asexual (Pure):
उन्हें sex में कोई रुचि नहीं होती।
2. Graysexual:
कभी-कभी बहुत दुर्लभ स्थितियों में थोड़ा यौन आकर्षण महसूस कर सकते हैं।
3. Demisexual:
सिर्फ तभी यौन इच्छा महसूस करते हैं, जब बहुत गहरा भावनात्मक जुड़ाव हो।
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Asexual लोगों के सामने चुनौतियाँ
समाज का यह कहना कि "तुम्हें कुछ गड़बड़ है"
रिश्तों में पार्टनर की sexual जरूरतें पूरी न कर पाने की दुविधा
खुद को "different" या "broken" समझने का डर
लेकिन सच्चाई ये है —
उनमें कुछ भी गलत नहीं है।
हर इंसान का शरीर और मन अलग है।
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ओशो का नज़रिया
> "Sex एक साधन है — साध्य नहीं।
और अगर किसी के भीतर ऊर्जा sex की ओर नहीं जाती —
तो वह सीधे परमात्मा की ओर जा सकती है।"
ओशो ने कभी sex को ना अपनाने वालों को भी सम्मान दिया।
क्योंकि उनके अनुसार हर आत्मा की दिशा अलग हो सकती है।
कुछ लोग प्रेम से परमात्मा तक जाते हैं,
कुछ लोग अकेले ध्यान से —
और दोनों ही रास्ते वैध हैं।
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क्या Asexuality हमारे शास्त्रों में है?
हां।
कई ऋषियों-मुनियों, ब्रह्मचारियों ने स्वेच्छा से यौन जीवन का त्याग किया।
वो सिर्फ शरीर से नहीं, मन से भी संन्यासी थे।
हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा गया।
भीष्म पितामह ने आजीवन विवाह और यौन जीवन से दूरी बनाई।
उनकी तपशक्ति सिर्फ त्याग की नहीं,
बल्कि एक गहरे आत्मिक निर्णय की थी।
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Asexuality – आधुनिक दौर में
आजकल Asexuality को LGBTQIA+ के 'A' में जोड़ा गया है।
बहुत से युवाओं को जब ये अहसास होता है कि "मैं ऐसा ही हूँ",
तो वो राहत महसूस करते हैं।
वे जान जाते हैं कि वो अकेले नहीं हैं।
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अंत में...
हर इंसान की देह और चेतना अलग है।
Sexuality एक रंगमंच है —
जिसमें सबकी भूमिका अलग है।
Asexuality भी एक विकल्प है —
एक जीवनशैली,
जो न शोर मचाती है,
न विरोध करती है —
बस शांत रहती है।
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अगर तुम्हारे भीतर कभी ऐसा कोई मौन रहा हो —
तो तुम समझोगे,
कि प्रेम की सबसे ऊँची अवस्था शायद यही है —
जहाँ देह की कोई ज़रूरत नहीं बचती।
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