झूठी मुस्कानें



जो मुझे पसंद नहीं करते,
पर मुस्कानें अपने चेहरे पर सजाते हैं,
वही सबसे खतरनाक होते हैं,
जो भीतर से नफरत छुपाते हैं।

मैं जानता हूँ, उनके शब्द मीठे होते हैं,
पर दिल की गहराई में कुछ और होते हैं।
जो दिखाते हैं अपनापन और प्यार,
वही अक्सर होते हैं सबसे बड़े दुश्मन यार।

उनकी नजरें मुझसे कहीं दूर जाती हैं,
पर चेहरे पर हंसी की परत चढ़ जाती है।
मैं जानता हूँ, उनका छल साफ है,
पर मैं फिर भी, दिल से न समझ पाता हूँ।

झूठे रिश्ते, झूठी बातें,
सिर्फ दिल को तोड़ने के साजिशें।
मैं वही हूँ जो महसूस करता हूँ,
जिन्हें मैं प्यार करता हूँ, वही मुझे नुकसान पहुँचाते हैं।

ऐसे लोग मेरे आस-पास नहीं चाहिए,
जो मेरी पीठ के पीछे कुछ और कहें।
सच्चे रिश्ते, सच्ची दोस्ती की खोज है,
जहाँ हर शब्द और भावना सच्ची हो, यही जीवन की कोमलता है।


मैं कौन हूँ?



डर के साये में जीवन गुज़ारता,
हर छाया से बचने का प्रयास करता,
पर क्या छाया ही सत्य है?
या मैं ही वह प्रकाश हूँ,
जिसे मैंने कभी देखा ही नहीं?

हर आहट पर सिहरता हूँ,
हर परिवर्तन से घबराता हूँ,
मानो यह संसार मेरा शत्रु हो,
पर क्या यह संसार है भी?
या यह बस मेरा ही भ्रम है?

मैं दौड़ता रहा पहचान की ओर,
नाम, रिश्ते, और उपलब्धियों में,
पर हर शीशे में केवल परछाई मिली,
खुद का अक्स कभी स्पष्ट नहीं हुआ।

मैं कौन हूँ?
वह देह जिसे मैं अपना कहता हूँ?
या वह विचार जो पल में बदल जाते हैं?
या वह शून्य, जो सदा अडिग है, अचल है?

जो मैं हूँ, वह न मिटता है,
न बढ़ता है, न घटता है,
जो मैं हूँ, वह सत्य है,
जो मैं हूँ, वही आत्मा है।

अब और नहीं छिपूँगा,
अब और नहीं डरूँगा,
अब इस छलावे को पहचानूँगा,
अब केवल स्वयं को जानूँगा।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...