मैं कौन हूँ?



डर के साये में जीवन गुज़ारता,
हर छाया से बचने का प्रयास करता,
पर क्या छाया ही सत्य है?
या मैं ही वह प्रकाश हूँ,
जिसे मैंने कभी देखा ही नहीं?

हर आहट पर सिहरता हूँ,
हर परिवर्तन से घबराता हूँ,
मानो यह संसार मेरा शत्रु हो,
पर क्या यह संसार है भी?
या यह बस मेरा ही भ्रम है?

मैं दौड़ता रहा पहचान की ओर,
नाम, रिश्ते, और उपलब्धियों में,
पर हर शीशे में केवल परछाई मिली,
खुद का अक्स कभी स्पष्ट नहीं हुआ।

मैं कौन हूँ?
वह देह जिसे मैं अपना कहता हूँ?
या वह विचार जो पल में बदल जाते हैं?
या वह शून्य, जो सदा अडिग है, अचल है?

जो मैं हूँ, वह न मिटता है,
न बढ़ता है, न घटता है,
जो मैं हूँ, वह सत्य है,
जो मैं हूँ, वही आत्मा है।

अब और नहीं छिपूँगा,
अब और नहीं डरूँगा,
अब इस छलावे को पहचानूँगा,
अब केवल स्वयं को जानूँगा।


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