यहां से वहां जाना, वहां से यहां आना,
फिर वहीं पहुंचना, जहां से शुरू किया था।
यही जीवन चक्र है, सतत चलती माया,
कालचक्र का खेल है, जिसमें बंधी है काया।
जन्म से जीवन का रथ, आगे बढ़ता चलता,
जीवन के हर मोड़ पर, नव अनुभव का झरना बहता।
सुख-दुख की परछाईं में, हर पल रंग बदलता,
मृत्यु की चादर में, अंत में समा जाता।
जीवन की धारा में, निरंतर बहता है राग,
हर सुबह नव उत्साह, हर शाम नया त्याग।
रिश्तों की डोर में बंधा, प्रेम का सागर गहरा,
कभी हंसता, कभी रोता, कभी मूक बना रहता।
जन्म का खेल है शुरू, मृत्यु के संग सिमटता,
फिर नया जन्म लेकर, पुनः खेलना प्रारंभ करता।
कर्मों का लेखा-जोखा, साथ चलता जीवन भर,
धर्म की राह पर चलकर, पाते हम सच्चा अमृत।
यही चक्र है अनवरत, समय की धुरी पर घूमता,
जीवन की रीत है, सत्य और माया का मेल।
पुनर्जन्म की आस में, कर्मों का फल भोगना,
धर्म का पालन कर, आत्मा को मोक्ष प्राप्त होना।
यहीं से वही आना, वही से यहीं जाना,
यही जीवन चक्र है, सतत चलती माया।