क्यों मैं नास्तिक बन गया: एक आत्मविश्वास की खोज


जब मैं अपने धार्मिक अनुष्ठानों में बढ़ता था, तो मेरा आत्मविश्वास उसी में निहित था। मेरा धार्मिक विश्वास मुझे सुरक्षित महसूस कराता था, जैसे कि मेरी जिंदगी को किसी अद्भुत योजना का हिस्सा मानने के लिए। परंतु, समय के साथ, मेरे धार्मिक विचारों में संदेह उत्पन्न होने लगा।

मेरे धार्मिक शिक्षकों और गुरुओं की बातों में असंख्य संग्रहित अनुभवों के खिलाफ आंखों का खुलना शुरू हुआ। मैंने अपने आसपास की दुनिया को और विचारों को जाँचने का निर्णय किया। इस प्रक्रिया में, मैंने धर्मिक तथ्यों में अनेक असंगतताओं और अविश्वासीताओं को खोजा।

हिटलर का उदाहरण इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा बना। उनका उदाहरण साबित करता है कि धार्मिकता की अभिव्यक्ति और अंधविश्वास किस प्रकार नुकसान पहुंचा सकते हैं। हिटलर का व्यक्तित्व और उनके कृत्य मेरे धार्मिक धारणाओं को प्रश्नित करने का कारण बने।

इस प्रक्रिया में, मैंने स्वयं को एक विचारशील नागरिक के रूप में पुनः खोजा। मेरे अनुभवों और शिक्षाओं के माध्यम से, मैंने धर्मिक अभिमान के स्थान पर स्वतंत्रता, समानता, और विज्ञान के महत्व को स्वीकार किया।

नास्तिक बनने का मतलब यह नहीं है कि मैं आध्यात्मिकता के समस्त पहलुओं को अस्वीकार कर रहा हूं। बल्कि, यह मतलब है कि मैं स्वयं को सच्चाई की खोज में जुटा रहा हूं, और उसे धार्मिक या आध्यात्मिक आधार पर प्राथमिकता देने की बजाय लोगिक और विज्ञान के प्रमाणों के माध्यम से समझने की कोशिश कर रहा हूं।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...