इतिहास की परछाइयाँ



हमेशा से यही सिलसिला रहा है,
कभी एक रंग, कभी एक नाम से छेड़ा गया।
हमें क्या फर्क पड़ा, क्या था हमारा ग़लत?
बस कुछ नया था, तो दुनिया ने सवाल किया।

पहले, कोई भिन्न था तो वो पराया था,
जिन्हें हम अपना मानते थे, वो भी अजनबी थे।
कहीं दूर, कहीं पास, हर जगह यही दर्द था,
"तुम मेरे जैसे क्यों नहीं हो?" ये सवाल था।

आज कल, ज़रा सोचो—
क्या फर्क पड़ा है हमारे दिलों में?
आज भी दीवारें हैं, लेकिन अब कुछ टूटने लगी हैं,
हमसे कोई भिन्न हो, तो हम उससे डरते नहीं।

बिलकुल, कुछ गलतियाँ अब भी हैं,
पर अच्छाई का सूरज धीरे-धीरे उग रहा है।
जो कभी शत्रु थे, वो अब दोस्त बनने लगे हैं,
दुनिया का रास्ता अब शायद कुछ बेहतर दिखने लगा है।


हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप: शक्ति और भक्ति के प्रतीक

भगवान हनुमान केवल एक भक्त ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साकार रूप हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और ग्रंथों में मिलता है...