यादों का गुब्बरा देखो ये फूट गया है उस गगन में जिस में हम खुद जाना चाहते थे मगर हम जा न पाए तो क्या हुआ हमारी निशानी उस मुक्त गगन में उड़ रही थी पर जमीं की हमारी धूल ने उस हाइड्रोजन के गुब्बारे को आज फोड़ दिया है और हमारी यादों के फटते हुए गुब्बारे मुक्त गगन उड़ रहे हैं टूट फूट कर वो कण कण हो गए और हर कण में हम भी बस गए
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