मौन है सृष्टि का पहला गीत,
मौन में छिपा है अस्तित्व का मीत।
शब्दों की सीमा, मन की परिधि,
मौन ही करता हर बंधन को विदीर्ण।
परमात्मा नहीं समझता भाषा का खेल,
ना हिंदी, ना अरबी, ना कोई मेल।
मौन में है वह गूंज सजीव,
जहाँ आत्मा पाती शांति का दीप।
आदमी ने रची भाषाओं की लकीर,
पर मौन ने तोड़ी हर दीवार की जंजीर।
जहाँ शब्द चूकते, वहाँ मौन बोलता,
हर आत्मा का सच खुलकर टटोलता।
मौन है धरा का गहरा संवाद,
जोड़े आत्मा को, करता परमात्मा से बात।
मौन की शक्ति, अनहद का स्पर्श,
शब्दों के परे, जीवन का अमर उत्सव।
इसलिए छोड़ो भाषाओं का बंधन,
मौन से पाओ ब्रह्म का दर्पण।
मौन है अस्तित्व का अमिट संदेश,
मौन से पाओ परमात्मा का विशेष।