ज़िन्दगी बुला रही है...
मैं Alexander को ‘महान’ क्यों नहीं मानता –
एक ऐतिहासिक पुनर्विचार
इतिहास उन लोगों को याद रखता है जो कुछ असाधारण करते हैं—अच्छा या बुरा। लेकिन जब किसी को ‘महान’ की उपाधि दी जाती है, तो केवल उसकी जीतें या विजय यात्राएं नहीं, बल्कि उसके नैतिक मूल्यों, व्यक्तित्व, और जनता के प्रति दृष्टिकोण को भी देखा जाना चाहिए।
Alexander of Macedon को “Alexander the Great” कहा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वह सच में ‘महान’ था?
मेरे लिए इसका उत्तर एक स्पष्ट "नहीं" है।
क्यों?
क्योंकि जिस व्यक्ति ने अपने पिता की हत्या करवाई, अपनी माँ को अनदेखा किया, अपनी महत्वाकांक्षा के लिए लाखों लोगों का संहार किया, और जिसने भारत में वीर योद्धा राजा पोरस से युद्ध में हार के बावजूद खुद को विजेता घोषित करवाया — उसे महान कहना इतिहास के साथ अन्याय है।
पिता की हत्या: सत्ता का खून से सिंचित रास्ता
Alexander के पिता Philip II ने यूनान को एकजुट किया था और Macedonia को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाया।
लेकिन वर्ष 336 ईसा पूर्व में उसकी हत्या कर दी गई। हत्यारा Pausanias नामक अंगरक्षक था — परंतु ऐतिहासिक स्रोतों (Plutarch, Justin आदि) में यह संकेत हैं कि हत्या की साज़िश में Alexander और उसकी माँ Olympias की संभावित संलिप्तता थी।
हत्या के बाद Alexander तुरन्त गद्दी पर बैठा।
उसने अपने सौतेले भाइयों और परिवार के अन्य प्रतिद्वंद्वियों को मरवा दिया।
क्या यह महानता है — या सत्ता के लिए निर्दयी षड्यंत्र?
एक ऐसा बेटा, जिसने माँ और रिश्तेदारों को भी नहीं छोड़ा
Alexander की माँ Olympias, शुरू में उसकी सबसे बड़ी समर्थक थी। लेकिन जैसे-जैसे Alexander फारस और एशिया की विजय यात्रा पर निकला, उसने Olympias को दूर कर दिया।
Olympias को राजनीति से बाहर रखा गया।
कई इतिहासकारों के अनुसार Alexander अपनी माँ के व्यवहार से नफरत करता था, विशेषतः उसके अत्यधिक हस्तक्षेप और तांत्रिक गतिविधियों से।
वो बेटा जो सत्ता में आते ही अपनों से मुंह मोड़ ले, और भरोसे की जगह शक रखे — क्या वो महान कहलाएगा?
एक खूनी विजेता — जिसने सभ्यताओं को रौंदा
Alexander ने 13 साल में लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर का साम्राज्य बनाया, लेकिन इस ‘महानता’ की कीमत चुकाई गई लाखों निर्दोष जानों से।
फारस, मिस्र, सीरिया, अफगानिस्तान और भारत — हर जगह उसका मार्ग विनाश और खून से लाल था।
सैकड़ों नगर जलाए गए, हज़ारों महिलाएं और बच्चे मारे गए।
Persian राजधानी Persepolis को खुद Alexander ने नष्ट करवाया, शराब के नशे में।
क्या केवल साम्राज्य का फैलाव ही महानता है?
Alexander का भारत आगमन — जीत नहीं, झूठी कहानी
कब और कैसे आया?
Alexander 327 ईसा पूर्व में अफ़गानिस्तान के रास्ते भारत आया।
उसने Indus नदी पार की और Taxila (तक्षशिला) के राजा Ambhi (जिसे यूनानी स्रोत Omphis कहते हैं) से मित्रता कर ली।
फिर उसका सामना हुआ राजा पोरस से — जो झेलम (Hydaspes) नदी के पार अपने राज्य का रक्षक था।
झेलम युद्ध (Battle of the Hydaspes) – मई 326 ईसा पूर्व
Alexander के पास लगभग 45,000 सैनिक थे, पोरस के पास लगभग 30,000 पैदल, 4,000 घुड़सवार और 100–200 युद्ध हाथी।
Alexander ने बारिश के मौसम में नदी पार करके आश्चर्यजनक हमला किया — परंतु युद्ध बहुत लंबा, कठिन और अत्यंत नुकसानदायक रहा।
Greek इतिहासकारों जैसे Arrian और Curtius Rufus ने Alexander को विजेता बताया — लेकिन इनमें से कोई भी युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी नहीं था। सभी ने सदियों बाद रोम या एथेंस में बैठकर लिखा।
कई इतिहासकार (विशेषकर भारतीय और आधुनिक विद्वान) मानते हैं:
पोरस की वीरता और युद्ध कौशल ने Alexander को आगे बढ़ने से रोक दिया।
Alexander ने पोरस को बंदी नहीं, बल्कि सम्मानपूर्वक राज्य सहित बहाल किया।
अगर Alexander विजेता होता तो वह पोरस को न मारकर, उसके राज्य को अपने अधीन कर लेता।
सच यह है कि उसने पोरस की वीरता के सामने हार स्वीकार की, भले ही शब्दों में नहीं, पर कर्मों में ज़रूर।
क्यों नहीं बढ़ सका आगे?
Alexander की सेना Beas नदी तक पहुँची — पर वहाँ उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया।
भारतीय सेनाओं (विशेषकर नंद वंश) की शक्ति की खबरें थीं।
जंगल, बारिश, भारी हथियार और हाथी — उसकी सेना डर चुकी थी।
अंततः Alexander को वापस लौटना पड़ा — उसका भारत अभियान यहीं थम गया।
इतिहास कहता है कि यह वापसी हार नहीं थी — पर क्या पीछे हटना तब होता है जब आप सचमुच विजेता हों?
अंत – अकेला, बीमार और विरासत-रहित
Alexander की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में Babylon में हुई — महज़ 32 वर्ष की उम्र में।
कुछ मानते हैं कि उसे ज़हर दिया गया, कुछ उसे मलेरिया या टायफॉयड बताते हैं।
उसने कोई उत्तराधिकारी नहीं छोड़ा।
उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य खंड-खंड हो गया।
न उसने कोई स्थायी प्रशासन खड़ा किया, न ही कोई न्याय व्यवस्था या शिक्षा प्रणाली।
यानी: नायक बनने की सारी शर्तों में वह असफल रहा।
तलवार से जीता राजा ‘महान’ नहीं होता
Alexander ने केवल भूमि जीती — दिल नहीं।
उसकी जीतें विजय यात्रा थीं — विकास यात्रा नहीं।
उसका साम्राज्य फैला, लेकिन उसका मानवता से रिश्ता छोटा ही रहा।
“जो अपने लोगों से प्यार नहीं कर सका,
जो अपने परिवार को न निभा सका,
जो लाखों को मार कर सिंहासन पर चढ़ा —
वो ‘महान’ नहीं, सिर्फ़ एक और ‘विजेता’ था।”
Alexander को "The Great" कहना सिर्फ़ एक औपनिवेशिक भ्रम है, जो ग्रीक लेखकों द्वारा फैलाई गई एकतरफा कहानी पर आधारित है।
आज ज़रूरत है कि हम इतिहास को पुनः देखें — अपनी नज़र से, न कि उन लोगों की आँखों से जिन्होंने उसे राजनीतिक उद्देश्य से लिखा।
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