जो शक्ति हम देते हैं छाया को,
वो हमारी ही शक्ति होती है।
उस प्रक्षेपण के मायाजाल में,
हमारी सोच ही खोती है।
पर जब समझते हैं ये रहस्य,
कि यह केवल एक प्रक्षेपण है,
न कोई महत्व, न कोई सत्ता,
यह तो बस भ्रम का दर्पण है।
दानव जो दिखता है विशाल,
वो केवल विचारों का स्वरूप है।
हमारे भय, हमारी आशंका,
उसकी असली पहचान है।
जो हमने उसे दिया महत्व,
वो वही ताकत बनकर खड़ा हुआ।
पर जब मान लिया उसे धूल,
वो क्षण भर में मिट्टी हुआ।
यह समझ ही है असली शक्ति,
जो हर बंधन को काट देती है।
हर छाया, हर डर, हर भ्रम को,
एक पल में हवा कर देती है।
तो शक्ति को वापस लो तुम,
छाया को बस छाया मानो।
न कोई भय, न कोई महत्व,
बस सत्य के संग अब रहो।
जीवन की ये साधना है,
छाया में न खो जाना।
प्रक्षेपण को पहचान कर,
स्वयं को सत्य में बसाना।