संदेह

…और अब, अब हर कदम पर एक संदेह है।

अब प्रेम में वो निश्चलता नहीं,
वो खुला आकाश नहीं,
जहाँ भावनाएँ निर्बाध उड़ सकें।
पहली बार जब प्रेम किया था,
तो हर धड़कन एक गीत थी,
हर स्पर्श में न कोई डर था,
न कोई असमंजस।

अब प्रेम एक पहेली सा लगता है,
जहाँ दिल चाहता है बह जाना,
पर दिमाग किनारे से लहरें गिनता रहता है।
अब विश्वास से पहले सवाल आते हैं,
और अपनाने से पहले संकोच।

काश, फिर से वही मासूमियत मिल जाए,
फिर से वही बेखौफ़ चाहत।
काश, प्रेम फिर से उतना ही सरल हो जाए,
जितना पहली बार था।


आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...