स्वयं पर निर्भर — असली शक्ति


जब जाना
कि सहारा बाहर नहीं,
बल्कि भीतर है,
तब समझ आया—
सबसे बड़ी ताक़त
अपने आप में होना है।

मैंने खुद को टटोला,
अपनी खामोशी में सुना
एक आवाज़ —
"मैं ही काफ़ी हूँ।"

अब ना किसी की मंज़ूरी चाहिए,
ना किसी की वाहवाही।
मैं जैसा हूँ,
बस वैसा ही रहना
अब मेरी आज़ादी है।

मैं
अपने दर्द का मरहम भी हूँ,
और अपनी रूह की रौशनी भी।
जो खोया,
वो सबक़ बना;
जो पाया,
वो सच्चा सहारा।

अब मुझे किसी और की छाया नहीं चाहिए—
क्योंकि मैं
खुद अपनी धूप हूँ,
और खुद अपना आसमान।


---