हौंसलों के चराग जलते रहे।

त्याग तपस्या में जो हमने दिन-रात एक किए,
ख्वाबों की चादर में अरमान बुनते रहे।

पर किस्मत की ठिठोली देखिए, न मिली वो मंजिल,
फिर भी हौंसलों के चराग जलते रहे।

अंतर्मन

धीरे-धीरे रात का साया ढल गया,
मन की गहराईयों में खो गया।
सूर्य की किरणों ने सलामती सुनाई,
अंतर्मन के रहस्यों को समझा अर्जुन ने जी भर के।

मन की गहराईयों में छिपी रहस्यमय दुनिया,
हर रोज़ नए रंगों में खोजते हैं जब हम,
पाते हैं वहाँ सच्चाई का संगम,
वो अंतर्मन की अनगिनत लहरें, वो अद्भुत दृश्य विलीन।

ध्यान में जो खोया है, वह अमर है,
जैसे बादलों की छाया जिसको चेहरा ढ़का दे।
अंतर्मन की गहराइयों में छिपा सच,
जिसे धीरे-धीरे हम पहचानते हैं, जब चाँदनी की किरणे जगमगाती हैं।

हर एक कविता, हर एक शेर,
अंतर्मन की कहानी का विवरण करता है यह।
जब अव्यक्त भावों को शब्दों में पिरोते हैं हम,
तब मन की गहराइयों में एक नया आधार मिलता है हमें।

अंतर्मन की गहराइयों में छिपा रहस्य,
सच्चाई की खोज में जैसे यात्री।
हर एक खोज, हर एक पहेली,
मन की गहराइयों का खुलासा करती है, वह विलक्षण खेली।

धीरे-धीरे अंतर्मन की गहराइयों में खोया है,
वहाँ खोजते हैं हम सच्चाई का पथ,
जहाँ दिखती है मन की असीम विस्तृतता,
वहाँ पाते हैं हम मन की अद्भुत गहराईयों का परिचय।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...